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चीनी विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत यात्रा, NSA दोवाल के साथ सीमा वार्ता

चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत आएंगे और NSA अजीत दोवाल के साथ सीमा विवाद पर चर्चा करेंगे। यह PM मोदी की चीन यात्रा से पहले की महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल है।

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चीनी विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत यात्रा पर, NSA डोभाल के साथ करेंगे सीमा वार्ता

चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत की एक महत्वपूर्ण यात्रा पर आएंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीतडोभाल के साथ सीमा विवाद पर चर्चा करेंगे। यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से कुछ दिन पहले हो रही है, जो शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 31 अगस्त को तियांजिन जाएंगे। यह मोदी की 2020 के गलवान संघर्ष के बाद चीन की पहली यात्रा होगी।

द्विपक्षीय संबंधों में नया अध्याय

वांग यी की यात्रा भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। विशेष प्रतिनिधि तंत्र के तहत होने वाली यह बैठक मुख्य रूप से सीमा विवाद के समाधान पर केंद्रित होगी। दोनों देशों के बीच यह तंत्र 2003 में स्थापित किया गया था और सीमा मुद्दे पर राजनीतिक समाधान खोजने के लिए बनाया गया था।

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पिछली बारडोभाल और वांग यी की मुलाकात जून में SCO सुरक्षा परिषद सचिवों की बैठक में हुई थी, जहां दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की थी। इस बार की वार्ता में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति, आगे के सुधार के कदम और शांति-स्थिरता बनाए रखने के उपायों पर चर्चा होने की उम्मीद है।

सीमा विवाद में प्रगति

हाल के महीनों में भारत-चीन संबंधों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है। अक्टूबर 2024 में दोनों देशों के बीच डेप्सांग और डेमचोक क्षेत्रों में पैट्रोलिंग बहाली का समझौता हुआ, जिससे 2020 के बाद से चली रही गतिरोध समाप्त हुई। इस समझौते के तहत दोनों देशों के सैनिक मई 2020 से पहले की स्थिति के अनुसार पैट्रोलिंग कर सकेंगे।

पहले गलवान, पैंगोंग त्सो, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे पांच घर्षण बिंदुओं पर विसंगति पूरी हो चुकी है। अब डेप्सांग और डेमचोक के समाधान के साथ, तीन-चरणीय प्रक्रिया - विसंगति, डी-एस्केलेशन और सैनिकों की वापसी - का पहला चरण पूरा हो गया है।

अमेरिकी दबाव और भू-राजनीतिक संदर्भ

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वांग यी की यात्रा एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूसी तेल खरीद के कारण 50% तक का शुल्क लगाया है। यह भारत के लिए अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव का कारण बना है और इसने नई दिल्ली को चीन तथा रूस के साथ संपर्क बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर 20-21 अगस्त को मॉस्को की यात्रा पर जाएंगे, जहां वे रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय व्यापार और ऊर्जा सहयोग पर चर्चा करेंगे। यह कूटनीति भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की नीति को दर्शाती है।

ऑपरेशन सिंदूर और नई चुनौतियां

भारत-चीन संबंधों में सुधार के बावजूद, कुछ नई चुनौतियां भी सामने आई हैं। मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने बताया कि चीन ने पाकिस्तान को लाइव इंटेलिजेंस सहायता प्रदान की थी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के 81% सैन्य हार्डवेयर चीनी मूल के हैं और चीन इसे अपने हथियारों के परीक्षण के लिएलाइव लैबके रूप में इस्तेमाल करता है।

हालांकि चीन ने इन आरोपों को नकारा है और कहा है कि चीन-पाकिस्तान रक्षा सहयोग सामान्य है और किसी तीसरे पक्ष को निशाना नहीं बनाता।

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कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली

भारत-चीन संबंधों में सुधार का एक सकारात्मक संकेत कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली है। पांच साल के अंतराल के बाद यह तीर्थयात्रा जून 2025 में फिर से शुरू हुई। यह यात्रा उत्तराखंड के लिपुलेख पास और सिक्किम के नाथू ला पास दोनों मार्गों से चल रही है।

इस वर्ष 750 तीर्थयात्रियों का चयन किया गया है - लिपुलेख मार्ग से 5 बैच में 250 और नाथू ला से 10 बैच में 500 तीर्थयात्री। यह द्विपक्षीय संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विशेष महत्व रखता है।

SCO शिखर सम्मेलन और आगे की राह

वांग यी की यात्रा प्रधानमंत्री मोदी की आगामी चीन यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियांजिन में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। इस दौरान उनकी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक होने की संभावना है।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा है कि चीन प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का स्वागत करता है और उम्मीद करता है कि यह एकजुटता और मित्रता का सम्मेलन होगा।

निष्कर्ष

चीनी विदेश मंत्री वांग यी की आगामी यात्रा भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण है। यह केवल सीमा विवाद के समाधान में प्रगति को दर्शाती है बल्कि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी की संभावनाओं को भी इंगित करती है। अमेरिकी दबाव के बीच भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और चीन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में यह एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।

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