भारत-अमेरिका व्यापार विवाद 2025: टैरिफेज़, प्रभाव और भविष्य की राह
अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया, जिससे भारत के निर्यात और आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ सकता है। जानिए इस विवाद की पृष्ठभूमि, प्रभाव और भारत की रणनीति।
भारत और अमेरिका के व्यापार संबंध वर्षों से तेजी से बढ़ रहे थे, लेकिन 2025 में अचानक हुए टैरिफ विवाद ने इस गतिशीलता को ठहराव पर ला दिया है। अमेरिका ने 1 अगस्त 2025 से भारत के सभी आयात पर 25% टैरिफ लगाया, जो बाद में 6 अगस्त को एक अतिरिक्त 25% टैरिफ के साथ बढ़ाकर कुल 50% कर दिया गया। इस क़दम का मुख्य कारण भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद को राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए खतरा मानना था।
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अमेरिका का तर्क है कि भारत के साथ उनका व्यापार घाटा बढ़ रहा है, जो 2024 में 45.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। इसके अलावा, अमेरिका भारत पर कृषि सब्सिडी और खाद्य सुरक्षा के नाम पर गैर-प्रत्यक्ष व्यापार बाधाएँ लगाने का आरोप भी लगा रहा है। साथ ही, भारत की ब्रिक्स समूह में भागीदारी और रूस से ऊर्जा और सैन्य आयात ने अमेरिका की परेशानियों को और बढ़ा दिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह टैरिफ नीतियां केवल आर्थिक कदम नहीं, बल्कि रणनीतिक और भू-राजनीतिक दबाव का हिस्सा हैं। अमेरिका अपने “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा के तहत भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाकर भारत को व्यापार समझौते के लिए मजबूर करना चाहता है।
भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, रत्न-जewelery, वस्त्र और किचन उत्पाद शामिल हैं। इन क्षेत्रों पर टैरिफ का सीधा प्रभाव पड़ेगा।
• विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स: भारत अमेरिका को आईफोन का सबसे बड़ा स्रोत देश बन चुका था, लेकिन बढ़े हुए टैरिफ के कारण निर्माण और निर्यात पर प्रतिकूल असर होगा।
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• फार्मास्यूटिकल्स: भारत की दवा उद्योग अमेरिकी बाजार की लगभग 50% जेनेरिक दवाओं की सप्लाई करता है। टैरिफ वृद्धि से इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
• वस्त्र और गहने: इन खंडों को भी भारी नुकसान होने की संभावना है, क्योंकि 50% टैरिफ अन्य एशियाई देशों के मुकाबले काफी अधिक है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के डायरेक्टर अजॉय साहाई ने कहा, “यह कदम हमारे 55% निर्यात को प्रभावित करेगा और व्यापारिक माहौल में अनिश्चितता बढ़ाएगा।”
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ से भारत की कुल आर्थिक वृद्धि दर में कमी आ सकती है। कैपिटल इकोनॉमिक्स के डिप्टी चीफ इकोनॉमिस्ट शिलान शाह ने कहा, “भारत का अमेरिकी बाजार में आकर्षण कम होगा और इससे भारत की जीडीपी वृद्धि लगभग 0.6 प्रतिशत अंक कम हो सकती है।”
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गोल्डमैन सैक्स के अनुमानों के अनुसार, ये टैरिफ भारत की आर्थिक गति को 7% से घटाकर 6% तक सीमित कर सकते हैं।
भारत ने इस टैरिफ को “अनुचित, अतार्किक और व्यापारिक नियमों का उल्लंघन” करार दिया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत ने रूस से ऊर्जा आयात इसलिए बढ़ाए क्योंकि यूरोप ने रूस से अपने स्रोत सीमित कर दिए थे और अमेरिका से इस मामले में दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है।
भारत वर्तमान में कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर काम कर रहा है, जिनमें यूएई, ऑस्ट्रेलिया, यूके, और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन शामिल हैं, ताकि निर्यात के अवसर बढ़ाए जा सकें और व्यापारिक विधाओं को विविधता दी जा सके।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी भारत के उत्तर में 50% टैरिफ लगाने की पुकार लगाई है और कहा, “हमें अमेरिका के लिए भी समान टैरिफ दर लगानी चाहिए।”
भारत-अमेरिका व्यापार विवाद केवल टैरिफ का मुद्दा नहीं, बल्कि दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रणनीतिक संतुलन, भूराजनीति और आर्थिक हितों की टकराहट है। अमेरिकी टैरिफ नीतियों से भारत के निर्यात क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ेगा, साथ ही आर्थिक वृद्धि की दर में धीमापन की संभावना है।
भारत के लिए जरूरी है कि वह अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाए, निर्यात बाजारों को विविध बनाए तथा विश्व के अन्य शक्तिशाली आर्थिक केंद्रों के साथ रणनीतिक संबंध मजबूत करे। साथ ही, दोनों देशों के बीच संवाद जारी रहना आवश्यक है ताकि व्यावसायिक विवादों को समाधान के रास्ते पर लाया जा सके और द्विपक्षीय संबंधों की समग्र मजबूती बनी रहे।
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