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Will look into it’: CJI BR Gavai ने दिल्ली-NCR से स्ट्रे डॉग्स हटाने के SC आदेश पर पुनर्विचार का संकेत दिया
पृष्ठभूमि: आठ हफ्तों में सभी स्ट्रे डॉग्स हटाने का कड़ा आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को एक महत्वपूर्ण आदेश में दिल्ली और एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से आश्रयों में रखने का निर्देश दिया, यह कहते हुए कि सार्वजनिक सुरक्षा पर “कोई समझौता नहीं” किया जा सकता। आदेश में यह भी कहा गया कि पकड़े गए किसी भी कुत्ते को सड़क पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा, और अनुपालन में बाधा डालने वालों के खिलाफ अवमानना की चेतावनी दी गई। अदालत ने एमसीडी, एनडीएमसी और एनसीआर के अन्य निकायों को नए शेल्टर बनाने, सीसीटीवी लगाने, रिकॉर्ड रखने, नसबंदी-टीकाकरण की सुविधा सुनिश्चित करने और 6–8 हफ्तों में व्यापक अभियान चलाने को कहा।
अदालत में नई हलचल: CJI का आश्वासन—“I will look into this”
आदेश के बाद उठे व्यापक विरोध और कानूनी असंगतियों की ओर इशारा करते हुए बुधवार को एक याचिका का उल्लेख चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई के समक्ष किया गया, जिस पर उन्होंने कहा—“I will look into this”। उल्लेख के दौरान यह तर्क रखा गया कि मई 2024 में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया था कि कुत्तों की अंधाधुंध हत्या या मनमाना स्थानांतरण मान्य नहीं है और प्राधिकारियों को प्रचलित कानूनों और संवैधानिक करुणा के मूल्य के अनुरूप कार्रवाई करनी होगी। CJI ने यह भी रेखांकित किया कि दूसरी पीठ पहले ही आदेश पारित कर चुकी है, लेकिन उन्होंने मामले को देखने का आश्वासन दिया।
क्यों आया सख्त आदेश: बढ़ते डॉग-बाइट और रैबीज़ के मामले
अदालत की सख्ती का संदर्भ हाल के महीनों में कुत्ते के काटने की घटनाओं और रैबीज़ से मौतों में वृद्धि है, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों पर प्रभाव को “गंभीर और चिंताजनक” बताते हुए अदालत ने त्वरित कार्रवाई का आग्रह किया। आदेश में दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद के “वulnerable” इलाकों से प्राथमिकता के साथ कुत्तों को पकड़ने और बड़े पैमाने पर शेल्टर क्षमता विकसित करने का रोडमैप जोड़ा गया।
विरोध और समर्थन: समाज दो खेमों में बंटा
आदेश के तुरंत बाद आरडब्ल्यूए और कई निवासी समूहों ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कदम का स्वागत किया, जबकि पशु अधिकार समूहों और कई विशेषज्ञों ने इसे “अवैज्ञानिक” और “अव्यावहारिक” बताया। इंडिया टुडे की ग्राउंड रिपोर्ट में एमसीडी के कुछ ABC (एनिमल बर्थ कंट्रोल) केंद्रों की चिंताजनक स्थिति—अपर्याप्त सुविधाएं, रिकॉर्ड की कमी और गंदगी—सामने आई, जिससे बड़े पैमाने पर स्थायी आश्रय की योजना की व्यवहारिकता पर प्रश्न उठे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस निर्देश को भारत के शहरी जीवन और कानून के बीच टकराव के रूप में रेखांकित किया, यह बताते हुए कि ABC कानून का दर्शन—नसबंदी, टीकाकरण और “कैच-न्यूटर-रिटर्न”—अदालत के वर्तमान निर्देश से टकराता दिखता है।
कानूनी पेच: परस्पर-विरुद्ध निर्देशों की ओर इशारा
मामले की जड़ में दो समन्वित पीठों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं—एक ओर 11 अगस्त का निर्देश, दूसरी ओर मई 2024 का आदेश जो मौजूदा कानूनों की आत्मा के अनुरूप करुणा और विधिक प्रक्रिया पर जोर देता है। याचिकाकर्ता (कॉन्फ़्रेंस फ़ॉर ह्यूमन राइट्स, इंडिया) ने दलील दी कि यदि पहले के निर्देशों के अनुसार पर्याप्त संसाधन और योजनाबद्ध नसबंदी-टीकाकरण होता, तो आज इस तरह के कठोर स्थानांतरण की आवश्यकता नहीं पड़ती। CJI के समक्ष यह भी कहा गया कि भीड़भरे शेल्टरों में रोग फैलने का खतरा मानव स्वास्थ्य के लिए भी जोखिम बन सकता है।
प्रशासनिक चुनौती: आठ हफ्तों में क्या संभव?
दिल्ली और एनसीआर में अनुमानित बड़ी स्ट्रे डॉग आबादी को देखते हुए अल्पावधि में पर्याप्त, मानक- अनुरूप आश्रयों का निर्माण, trained स्टाफ, चिकित्सकीय प्रोटोकॉल और निगरानी तंत्र तैयार करना एक कठिन प्रशासनिक अभ्यास होगा। कोर्ट के निर्देशों में 5,000 कुत्तों को प्राथमिक चरण में पकड़ने, CCTV निगरानी, और किसी भी कुत्ते को दोबारा सड़क पर न छोड़ने जैसी शर्तें शामिल हैं, जिन पर क्रियान्वयन की पारदर्शिता और क्षमता दोनों की परीक्षा होगी। दिल्ली नगर निगम ने प्रारंभिक खाके और समय-रेखा पर काम शुरू करने की बात कही है, लेकिन जमीनी स्थिति—केंद्रों की क्षमता और हालत—एनजीओ और मीडिया जांचों में चिंता पैदा करती है।
विशेषज्ञों की राय: “करुणा बनाम सुरक्षा” नहीं, “करुणा के साथ सुरक्षा”
कई विधि विशेषज्ञ और पशु चिकित्सक इस बहस को “करुणा बनाम सुरक्षा” के द्वंद्व में नहीं, बल्कि “करुणा के साथ सुरक्षा” के संतुलन के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार, दीर्घकालिक समाधान के लिए ABC कार्यक्रमों का प्रभावी, पारदर्शी और लक्ष्यबद्ध क्रियान्वयन, व्यापक टीकाकरण, अपशिष्ट प्रबंधन, और शिकायत-निवारण का तेज़ तंत्र अनिवार्य है—जबकि अल्पकालिक में उच्च-जोखिम क्षेत्रों का जोखिम-नियंत्रण प्राथमिकता रहे। अदालत के वर्तमान आदेश ने सुरक्षा को सर्वोपरि रखा है, किंतु CJI के पुनरवलोकन संकेत से यह संभावना बनी है कि अदालत समन्वित पीठों की मतभिन्नता दूर करने और नीति व कानून के बीच पुल बनाने के लिए व्यापक सुनवाई कर सकती है।
आगे क्या: संभावित बड़े बेंच और नीति-स्तरीय स्पष्टता
कानूनी समुदाय में यह चर्चा है कि परस्पर-विरोधी निर्देशों के समाधान के लिए मामला बड़े बेंच के समक्ष रखा जा सकता है, ताकि ABC नियमों की आत्मा, सार्वजनिक स्वास्थ्य- सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवहारिकता के बीच स्पष्ट रोडमैप तय हो। जब तक औपचारिक समीक्षा या स्पष्टीकरण नहीं आता, नगर निकायों पर सख्त समय-सीमा और अनुपालन की जिम्मेदारी बनी रहेगी—साथ ही नागरिक समाज और पशु कल्याण समूहों के लिए न्यायिक मंच पर अपनी आपत्तियां और तथ्य रखने का अवसर भी।
मानव-केन्द्रित दृष्टि के साथ करुणा: बहस का सार
दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर घूमते कुत्ते शहर की सामाजिक-सांस्कृतिक वास्तविकता का हिस्सा हैं, लेकिन लगातार बढ़ती घटनाओं ने प्रशासन और न्यायपालिका दोनों को कठोर निर्णयों की ओर धकेला है। CJI का “I will look into this” केवल एक न्यायिक टिप्पणी नहीं, बल्कि संकेत है कि सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक करुणा, विज्ञान-आधारित नीति और सार्वजनिक सुरक्षा—तीनों के बीच संतुलन बनाते हुए अंतिम समाधान की ओर अग्रसर हो सकता है।
ऑन-रिकॉर्ड उद्धरण
• “I will look into this.” — CJI बी.आर. गवई, उल्लेख के दौरान, जब परस्पर-विरोधी आदेशों और ABC नियमों की ओर ध्यान दिलाया गया।
• “हमने पहले ही आदेश पारित किया है कि सार्वजनिक सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं—पकड़े गए किसी भी कुत्ते को सड़क पर वापस न छोड़ा जाए।” — आदेश का सार, जस्टिस जे.बी. परदीवाला की पीठ।
• “प्राधिकारियों को प्रचलित कानूनों की आत्मा के अनुरूप कार्रवाई करनी है; कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं हो सकती, करुणा संवैधानिक मूल्य है।” — मई 2024 का अवलोकन, समन्वित पीठ।
उपर्युक्त घटनाक्रम संकेत देता है कि आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर व्यापक सुनवाई कर सकता है, जिसमें जमीनी तथ्यों, कानूनी प्रावधानों और सार्वजनिक स्वास्थ्य की वास्तविकताओं को साथ रखकर, एक समग्र और क्रियान्वयन-योग्य समाधान खोजा जाएगा।
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