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बिहार मतदाता सूची संशोधन मामला: सुप्रीम कोर्ट से लाइव अपडेट
नई दिल्ली: बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज दिनभर अहम सुनवाई हुई, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग (EC) से तथ्यात्मक आंकड़े और प्रक्रिया-संबंधी स्पष्टीकरण मांगते हुए कहा कि अदालत मसले की जड़ तक जाएगी और किसी भी “वृहद बहिष्करण” की स्थिति में तुरंत हस्तक्षेप करेगी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हो चुकी है और अंतिम सूची 30 सितंबर को आएगी; यदि तब तक किसी भी अवैधता का स्पष्ट प्रमाण मिलता है, तो अदालत पूरे संशोधन परिणाम को निरस्त करने से भी नहीं हिचकेगी।
आज की सुनवाई में क्या हुआ
पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि वह इस अभ्यास से पहले और बाद के कुल मतदाताओं की संख्या, मृत घोषित मतदाताओं के आंकड़े, बहु-प्रविष्टियों का विवरण और बाहर किए गए मतदाताओं के आधारों सहित पूरे डेटा के साथ तैयार रहे। आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि इस तरह के राज्यव्यापी सत्यापन में “कहीं-कहीं त्रुटियाँ होना स्वाभाविक” है, और मसौदा सूची में दिखीं गलतियाँ वैधानिक आपत्तियों और दावों की प्रक्रिया में सुधारी जा सकती हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि 1 अगस्त के मसौदे में “करीब 65 लाख नामों को बिना आपत्ति के आधार पर हटाया गया” जो कानूनसम्मत नहीं है, और बड़ी संख्या में लोगों के पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं जिन्हें आयोग स्वीकार्य मान रहा है। इस पर पीठ ने नियमों की रूपरेखा का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान चरण में जिनका नाम नहीं है, उन्हें सम्मिलन के लिए आवेदन करना होगा; आपत्तियाँ और सत्यापन उसी प्रक्रिया में निपटेंगे।
पीठ ने यह भी दोहराया कि अदालत 29 जुलाई को दिए मौखिक निर्देश के अनुरूप “वृहद बहिष्करण” की आशंका पर सतर्क है और किसी भी असंगति पर तुरंत कदम उठाएगी। NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने स्पष्ट किया कि सितंबर तक भी गैरकानूनीता स्थापित होने पर संशोधन निरस्त किया जा सकता है।
EC का पक्ष: नियम, सुरक्षा-उपाय और नोटिस
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामों में कहा है कि मसौदा सूची से जिन व्यक्तियों के नाम शामिल नहीं हुए हैं, उनका अलग से नामवार प्रकाशन नियमों में अनिवार्य नहीं है; प्रभावित व्यक्तियों को सम्मिलन के लिए घोषणा/आवेदन का अवसर उपलब्ध है। आयोग ने यह भी आश्वासन दिया कि 1 अगस्त की मसौदा सूची से किसी भी नाम का अंतिम विलोपन “पूर्व-नोटिस, स्पष्ट कारण-सहित आदेश” और द्विस्तरीय अपील-प्रक्रिया के बिना नहीं होगा, ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित रहे। पीठ ने आयोग से इन सुरक्षा-उपायों के वास्तविक क्रियान्वयन पर भी स्पष्ट डेटा मांगा है।
आयोग का कहना है कि राज्य-व्यापी अभ्यास में मृतकों, बहु-प्रविष्टियों और राज्य से बाहर स्थानांतरित मतदाताओं की पहचान की गई है, और मसौदे पर आपत्तियाँ 1 सितंबर तक स्वीकार की जा रही हैं, जिसके बाद अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी। आयोग ने विवादित दावे—जैसे महिलाओं के नामों का अपेक्षाकृत अधिक विलोपन—पर कहा कि मसौदा चरण में त्रुटियाँ सुधारी जा सकती हैं और प्रमाण के साथ आवेदन/आपत्तियाँ आवश्यक हैं।
याचिकाकर्ताओं के आरोप और संवेदनशीलता
याचिकाकर्ता दलों व संगठनों—जिनमें RJD, कांग्रेस, TMC, NCP (शरद पवार), CPI, CPI(ML), SP, शिवसेना (उद्धव), JMM, PUCL और ADR शामिल—का आरोप है कि संशोधन की विंडो और दस्तावेज़ी मानकों के कारण लाखों योग्य मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। सिब्बल ने सुनवाई के दौरान यह भी इंगित किया कि बिहार की बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट या मैट्रिक प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ नहीं हैं, जिससे सम्मिलन-प्रक्रिया में बाधा बढ़ती है। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि स्वीकृत वैधानिक पहचान-पत्रों को व्यवहारिक रूप से देखना होगा, जबकि पूर्व सुनवाई में अदालत ने आधार, EPIC और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों पर विचार का संकेत दिया था।
BBC की रिपोर्ट में दावा है कि आयोग के SIR के बाद मसौदा सूची में नाम 7.89 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ हुए, जिसमें मृतक, बहु-प्रविष्टि और राज्य से बाहर गए मतदाताओं को घटाने की बात कही गई; साथ ही गलत फ़ोटो और मृत घोषित लोगों के नाम जैसी त्रुटियों की शिकायतें भी सामने आई हैं। हालांकि आयोग ने राजनीतिक पक्षपात के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि “कोई भी योग्य मतदाता पीछे न छूटे” इसके लिए विस्तृत दिशा-निर्देश 24 जून/27 जुलाई को जारी किए गए और राज्य में व्यापक सत्यापन किया गया।
अदालत के संकेत: पारदर्शिता, डेटा और समयरेखा
पीठ ने कहा कि वह आंकड़ों पर आधारित आकलन करेगी—कितने नाम पहले थे, मसौदे में कितने हैं, श्रेणीवार (मृतक, डुप्लीकेट, स्थानांतरित) विलोपन कितना है, और सम्मिलन/सुधार के कितने आवेदन आए। साथ ही, अदालत ने यह भी दोहराया कि यदि बड़े पैमाने पर बहिष्करण का प्रमाण मिलता है, तो वह समयसीमा के बावजूद हस्तक्षेप करेगी और “जितनी देर से भी गैरकानूनीता स्थापित हो, परिणाम उलटने पर विचार किया जाएगा”।
पीठ ने आयोग से कल की कार्यवाही के लिए भी तथ्यों और आंकड़ों के साथ उपस्थित होने को कहा है; इस बीच, सुनवाई कल तक जारी रहने की संभावना जताई गई है।
जमीनी असर: मतदाताओं के लिए आगे क्या
अदालत और आयोग दोनों ने संकेत दिया कि मसौदा चरण में त्रुटियाँ सुधारने का अवसर है—जिनका नाम नहीं है, वे तय समयसीमा के भीतर सम्मिलन के लिए आवेदन दें; विलोपन के प्रस्तावों पर नोटिस और अपील के अवसर उपलब्ध रहेंगे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 1 सितंबर तक आपत्तियाँ/दावे लिए जा रहे हैं, जिसके बाद 30 सितंबर को अंतिम प्रकाशन प्रस्तावित है।
विशेषज्ञों का कहना है कि “डेटा-पारदर्शिता और क्षेत्रवार ब्रेकडाउन” विवाद की तीव्रता घटा सकते हैं और अदालत की कसौटी पर भरोसा भी बढ़ा सकते हैं, वहीं विपक्ष का आग्रह है कि आयोग मसौदे से बाहर रहे नामों की सूची व कारण सार्वजनिक करे ताकि लक्षित बहिष्करण के आरोपों का परीक्षण हो सके।
उद्धरण: अदालत, पक्षकार और समीकरण
• “हम तथ्यों और आंकड़ों की जरूरत महसूस कर रहे हैं; अभ्यास से पूर्व और बाद के मतदाताओं का तुलनात्मक डेटा रखें, तभी हम ठोस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे,”—न्यायमूर्ति सूर्यकांत, सुनवाई के दौरान।
• “ऐसे व्यापक सत्यापन में कुछ त्रुटियाँ स्वाभाविक हैं; मसौदे में दिखाई देने वाली गलतियाँ दावों-आपत्तियों की वैधानिक प्रक्रिया में सुधारी जा सकती हैं,”—EC के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी।
• “65 लाख नाम बिना आपत्ति के हटाना असंवैधानिक है; बिहार की बड़ी आबादी के पास बताए गए दस्तावेज़ ही नहीं हैं,”—वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल।
• “यदि बड़े पैमाने पर बहिष्करण सिद्ध होता है तो अदालत तुरंत दखल देगी; सितंबर तक भी गैरकानूनीता साबित हुई तो संशोधन निरस्त हो सकता है,”—पीठ के मौखिक अवलोकन।
आगे की राह
कल की सुनवाई में उम्मीद है कि चुनाव आयोग विस्तृत संख्याएँ, श्रेणीवार विलोपन/सम्मिलन का ब्रेकडाउन और नोटिस-अपील कार्यप्रवाह की ऑन-ग्राउंड स्थिति अदालत के समक्ष रखेगा। अदालत का फोकस यही रहेगा कि क्या प्रक्रिया कानूनी ढांचे, प्राकृतिक न्याय और समावेशन की कसौटी पर खरी उतरती है, और क्या कहीं “वृहद बहिष्करण” की प्रवृत्ति उभर रही है।
विवाद के केंद्र में वही मूल प्रश्न है जो किसी भी मतदाता सूची संशोधन के लिए निर्णायक होता है—क्या “स्वच्छ रोल” की कवायद अनजाने में ही सही, योग्य मतदाताओं को बाहर कर रही है, और यदि हाँ, तो उसे कैसे शीघ्र, पारदर्शी और भरोसेमंद तरीके से सुधारा जा सकता है।
— यह रिपोर्ट समय-समय पर अपडेट की जाएगी जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही से नई जानकारी सामने आती है।
टिप्पणी: इस खबर में प्रयुक्त समयरेखा—मसौदा सूची 1 अगस्त, अंतिम सूची 30 सितंबर—और अदालती अवलोकन आज की सुनवाई की रिपोर्टिंग पर आधारित हैं; विस्तृत आदेश और आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध होते ही जोड़े जाएंगे।