राजस्थान के बांसवाड़ा के कृष्णा के जन्म से ही हाथ-पांव नहीं हैं। बचने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब छठी में पढ़ते हैं। कोहनियों के सहारे लिखते हैं और घुटनों में चप्पल पहनकर चलते हैं। कभी स्कूल मिस नहीं करते। कक्षा के होनहार छात्र कृष्णा बड़े होकर शिक्षक बनना चाहते हैं। कोहनियों से ही क्रिकेट खेलते हैं। कृष्णा के पिता प्रभुलाल मजदूरी करते हैं। कृष्णा खुद ही नहाकर तैयार भी हो जाता है।
लगता था बच्चा भविष्य में कुछ नहीं कर पाएगा
कृष्णा जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उसका संघर्ष बढ़ता गया। छोटे कृष्णा के बड़े आत्मविश्वास और जज्बे को उसकी दिव्यांगता नहीं रोक पाई। कृष्णा ने घुटनों से ही चलना शुरू कर दिया। 4 साल का होने पर स्कूल जाने लगा। 5 साल का था तब मां का देहांत हो गया। दादाजी उसे घर से दो किमी दूर पीएम श्री स्कूल छोटी सरवन छोड़ने जाते हैं। छुट्टी होने पर वह पैदल-पैदल खुद ही घर जाता है।
पिता प्रभुलाल मईड़ा कहते हैं- बच्चे की मुस्कान इतनी प्यारी थी कि दिव्यांगता के बाद भी सारे दुख भुला दिए। इसलिए नाम रखा कृष्णा।